बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 संस्कृत बीए सेमेस्टर-1 संस्कृतसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 संस्कृत
प्रश्न- आचार्य पाणिनि का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर-
आचार्य पाणिनि का संस्कृत भाषा में अतुलनीय योगदान माना जाता है. इन्हें संस्कृत व्याकरण का जनक भी माना जाता है। इनके जन्मकाल में कई विद्वानों में मतभेद माना जाता है। व्याकरण प्रणेता होने के कारण इन्हें महार्णि पाणिनि भी कहा जाता है। प्रस्तुत है आचार्य पाणिनि का संक्षिप्त जीवन परिचय -
1. आपका जीवनकाल 520 से 460 ई पूर्व माना गया है। आपका जन्मस्थान शलातुर नामक गाँव, वर्तमान में पाकिस्तान है। 2. अपने जन्मस्थान के अनुसार पाणिनि शालातुरीय भी कहे गये हैं। अष्टाध्यायी में नाम का उल्लेख किया गया है।
3. आपकी माता दाक्षी, पिता पणिन, शलांक तथा गुरु उपवर्ष थे।
4. एक सूची "धातु पाठ" की थी जिसे पाणिनि ने अष्टाध्यायी से अलग रखा है।
5. पाणिनी सूत्रों की शैली अत्यन्त संक्षिप्त है। वे सूत्रयुग में ही हुए थी। श्रौत सूत्र, धर्मसूत्र, गृहस्थ सूत्र, प्रातिशाख्य सूत्र भी इसी शैली में हैं किन्तु पाणिनि के सूत्रों में जो निखार है वह अन्यत्र नहीं है। इसलिए पाणिनि के सूत्रों को प्रतिष्णात सूत्र कहा गया है।
6. पाणिनि का व्याकरण शब्दानुशासन के नाम से विद्वानों में प्रसिद्ध है।
7. आठ अध्यायों में विभक्त होने के कारण यही शब्दानुशासन लोक में अष्टाध्यायी अथवा अष्टांग के नाम से प्रसिद्ध है।
8. पाणिनीय अष्टाध्यायी की सहायता से संस्कृत के प्राचीनतम साहित्य से लेकर नवीनतम रचनाओं का रसास्वाद कर सकते हैं।
9. अष्टाध्यायी में आठ अध्याय हैं और प्रत्येक अध्याय में चार पाद हैं। पहले दूसरे अध्यायों में सज्ञा और परिभाषा सम्बन्धी सूत्र है।
10. क्रिया और संज्ञा शब्दों के पारस्परिक सम्बन्ध के नियामक प्रकरण भी हैं, जैसे क्रिया के लिए आत्मनेद परस्मैपद- प्रकरण एवं संज्ञाओं के लिए विभक्ति समास आदि। तीसरे, चौथे और पाँचवें अध्यायो में सब प्रकार के प्रत्ययों का विधान है। तीसरे अध्याय में धातुओं मे प्रत्यय लगाकर कृदंत शब्दों का निर्वचन है और चौथे व पाँचवे अध्यायों में संज्ञा शब्दों में प्रत्यय जोड़कर बने नये संज्ञा शब्दों का निर्वचन बताया गया है।
11. ये प्रत्यय जिन अर्थविषयो को प्रकट करते हैं उन्हें व्याकरण की परिभाषा में वृत्ति कहते हैं, जैसे वर्षा में होने वाले इन्द्रधनुष को वार्षिक इन्द्रधनुष कहेंगे। वर्षा में होने वाले इस विशेष अर्थ को प्रकट करने वाला "इक" प्रत्यय तद्धित प्रत्यय है।
12. 1160 तद्धित प्रकरण में सूत्र है। कृदंत प्रकरण में 631 सूत्र हैं।
13. इस प्रकार कृदन्त तद्धित प्रत्ययो के विधान के लिए अष्टाध्यायी के 1821 अर्थात् आधे से कुछ ही कम सूत्र विनियुक्त हुए हैं।
14. भाष्यकार ने पाणिनि को प्रमाणभूत आचार्य, माङ्गलिक आचार्य, सुहृद तथा भगवान आदि विभूतियों से सम्बोधित किया है।
15. भाष्यकार के अनुसार पाणिनि के सूत्र में एक भी शब्द अनर्थक नहीं हो सकता, और पाणिनीय शास्त्र में ऐसा कुछ नहीं है जो निरर्थक हो।
16. पाणिनि का संस्कृत व्याकरण चार भागों में विभाजित है -
(अ) माहेश्वर सूत्र- स्वर शास्त्र
(ब) अष्टाध्यायी या सूत्रपाठ शब्द विश्लेषण
(स) धातुपाठ- धातुमूल (क्रिया के मूल रूप)
(द) गणपाठ।
पतञ्जलि ने पाणिनि के अष्टाध्यायी पर अपनी टिप्पणी लिखी जिसे महाभाष्य का नाम दिया। पाणिनि ने वर्ण या वर्णमाला को 14 प्रत्याहार सूत्रों में बाँटा और उन्हें विशेष क्रम देकर 42 प्रत्याहार सूत्र बनाये। यदि अष्टाध्यायी के अक्षरों को गिना जाये तो उसके 3665 सूत्र एक सहस्र श्लोक के बराबर होते हैं।
पाणिनि को दो साहित्यिक रचनाओं के लिए भी जाना जाता है, यद्यपि वे अब प्राप्त नहीं हैं।
1. जाम्बवती विजय आज एक अप्राप्त रचना है जिसका उल्लेख राजशेखर नामक व्यक्ति ने जहण की सूक्ति मुक्तावली में किया है। इसका एक भाग रामयुक्त की नामलिंगानुशासन की टीका में भी मिलता है। राजशेखर ने जहण की सूक्तिमुक्तावली में लिखा है -
2. पातालविजय - जो आज अप्राप्त रचना है, जिसका उल्लेख नामिसाधु ने रुद्रटकृत काव्यालंकार की टीकाओं में किया है।
माहेश्वर सूत्रों की कुल संख्या 14 है जो निम्नलिखित हैं-
1. अइउण 2. ऋलक 3. एओड़ 4. ऐऔच् 5. हयवरट् 6. लण् 7. ञमङणनम् 8. झभञ् 6. घढष्ट 10. जबगडद 11. खफछठथचटतव 12. कपय् 13. शषसर 14. हल।
नृत्तावसाने नटराजराजो ननाद ढक्कां नवपञ्चवारम्।
उद्धर्तुकामः सनकादिसिद्धान् एतद्धिमर्शे शिवसूत्रजालम्॥
आचार्य पाणिनि की मृत्यु रविवार त्रयोदशी को हुई थी इसलिए इस दिन को व्याकरण अध्ययन, अध्यापन नहीं किया जाता है।
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